हरियाणा में पेंशनधारकों के लिए बड़ी खुशखबरी, 5000 रुपये बढी पेंशन
हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने 30 जुलाई 2024 को एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। उन्होंने हिन्दी आंदोलन-1957 के मातृभाषा सत्याग्रहियों के लिए मासिक पेंशन को 15,000 रुपये से बढ़ाकर 20,000 रुपये प्रति माह करने की मंजूरी दी है। यह निर्णय उन लोगों के लिए एक बड़ी राहत है जिन्होंने मातृभाषा के अधिकार के लिए संघर्ष किया था।
Main Points
पेंशन में वृद्धि का महत्व
सरकारी प्रवक्ता के अनुसार, वर्तमान में सूचना, जनसंपर्क, भाषा एवं संस्कृति विभाग 161 मातृभाषा सत्याग्रहियों या उनके जीवित पति/पत्नियों को 15,000 रुपये मासिक पेंशन वितरित करता है। प्रस्तावित वृद्धि के बाद, पेंशन की राशि 20,000 रुपये प्रति माह हो जाएगी। इससे 96.60 लाख रुपये का अतिरिक्त वार्षिक व्यय होगा, जिससे कुल वार्षिक बजट लगभग 3.86 करोड़ रुपये हो जाएगा।
मातृभाषा सत्याग्रह का इतिहास
हिन्दी आंदोलन-1957, जिसे मातृभाषा सत्याग्रह भी कहा जाता है, का उद्देश्य हिन्दी को एक आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता दिलाना था। यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब पंजाब सरकार ने पंजाबी को राज्य की भाषा बनाने का प्रयास किया। इस निर्णय का विरोध करते हुए, हरियाणा के लोगों ने हिन्दी को अपनी मातृभाषा के रूप में मान्यता दिलाने के लिए संघर्ष किया। इस आंदोलन ने हरियाणा के गठन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्यमंत्री का बयान
मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने कहा, “यह निर्णय हमारे मातृभाषा सत्याग्रहियों के प्रति हमारी कृतज्ञता और सम्मान को दर्शाता है। उन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया और हमें गर्व है कि हम उनकी सहायता कर रहे हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि यह पेंशन वृद्धि उनके योगदान को मान्यता देने का एक तरीका है।
आर्थिक प्रभाव
पेंशन में यह वृद्धि हरियाणा सरकार के बजट पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव डालेगी। 96.60 लाख रुपये का अतिरिक्त व्यय सरकार के लिए एक चुनौती हो सकता है, लेकिन यह पेंशन उन लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता होगी जिन्होंने अपनी मातृभाषा के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी।
सामाजिक प्रतिक्रिया
इस निर्णय पर समाज के विभिन्न वर्गों से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। मातृभाषा सत्याग्रहियों के परिजनों ने इस निर्णय का स्वागत किया है। उन्होंने इसे एक सही दिशा में उठाया गया कदम बताया है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी इस निर्णय की सराहना की है और इसे मातृभाषा के प्रति सम्मान का प्रतीक माना है।