धान की फसल में पानी की बचत: नई तकनीकें और पुराने नुस्खे, विशेषज्ञों की राय जानें
आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि धान की फसल में ज्यादा पानी की जरूरत होती है। इसका मतलब है कि सिंचाई की ज्यादा आवश्यकता होती है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1 किलो चावल पैदा करने के लिए 5000 लीटर पानी की खपत होती है। कृषि एक्सपर्ट का कहना है कि धान की फसल में पानी की खपत को कम किया जा सकता है। इसके लिए किसानों को भी ध्यान देने की जरूरत है। ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि धान की फसल में कब और कितना पानी देना है।
कृषि विज्ञान केंद्र नियामतपुर में तैनात कृषि एक्सपर्ट डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि धान की फसल दो तरीके से उगाई जाती है। किसान परंपरागत तरीके से धान की रोपाई करते हैं, लेकिन पानी की बढ़ती खपत की वजह से वैज्ञानिक किसानों को डीएसआर (Direct Seeded Rice) तकनीक से धान की खेती करने के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं। जो किसान परंपरागत तरीके से धान की खेती करते हैं, उनके लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि धान की फसल में कब और कितना पानी देना चाहिए।
Main Points
रोपाई के दौरान पानी की जरूरत
डॉ. एनसी त्रिपाठी ने बताया कि धान की फसल की रोपाई के लिए खेत को पानी भरकर रोटावेटर से जुताई की जाती है। इसके बाद खेत में धान की नर्सरी के पौधों को रोपा जाता है। पौधे रोपित करते वक्त खेत में 3 से 5 सेंटीमीटर पानी होना चाहिए। यह पानी 15 से 20 दिनों तक नियमित बनाए रखना चाहिए। अन्यथा की स्थिति में धान की फसल के बीच खरपतवार उग आएंगे जो पौधों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे।
कल्ले निकलने के समय पानी की जरूरत
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि रोपाई के 20 से 25 दिन बाद धान के पौधे कल्ले निकलने की अवस्था में पहुंच जाते हैं। उस समय खेत में ज्यादा पानी की आवश्यकता नहीं रहती। जरूरी है कि खेत में नमी बनी रहे। अगर समय पर बारिश ना हो तो खेत में सिंचाई कर दें। अन्यथा की स्थिति में खेत में दरारें पड़ सकती हैं। इससे धान के पौधों की बढ़वार पर असर पड़ेगा और उत्पादन प्रभावित हो सकता है।
बाली निकलने के समय सिंचाई
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि धान के पौधों में बाली निकलने की अवस्था में सिंचाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। बाली निकलने के बाद दूध से दाने बनने की प्रक्रिया होती है। उस समय खेत में 3 से 5 सेंटीमीटर तक पानी भरें। इस समय पौधे को पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है।
ज्यादा पानी से नुकसान
डॉ. त्रिपाठी ने बताया कि धान की फसल में ज्यादा पानी भरने से पौधे रोग के चपेट में आ सकते हैं। ज्यादा दिन तक पानी भरा रहने की वजह से गर्मी के मौसम में पानी का तापमान बढ़ता है। इसका सीधा असर धान के पौधों की जड़ों पर पड़ता है। धान के पौधे ऑक्सीजन नहीं ले पाते। इससे जड़ें काली और पत्तियां पीली पड़ने लगती हैं। ऐसे लक्षण देखने के बाद धान के पौधे कमजोर हो जाते हैं।
धान की फसल में पानी प्रबंधन के सुझाव
- डीएसआर तकनीक का उपयोग: इस तकनीक से पानी की खपत कम होती है।
- सिंचाई का सही समय: पौधों की अवस्था के अनुसार पानी दें।
- नमी का ध्यान: खेत में नमी बनाए रखें, पर ज्यादा पानी न भरें।
- रोग नियंत्रण: ज्यादा पानी से बचें ताकि पौधे रोगमुक्त रहें।